Thursday, October 17, 2013

......... दरिंदा !!

 सभी साथियों को मेरा नमस्कार आप सभी के समक्ष पुन: उपस्थित हूँ प्रसिद्ध कवि भवानीप्रसाद मिश्र जी की रचना...... दरिंदा के के साथ उम्मीद है आप सभी को पसंद आयेगी.......!!

दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला

स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला

और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई

मानवता
थोडी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !

- - भवानीप्रसाद मिश्र



4 comments:

  1. बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ हैं ... आभार इनको साझा करने का ....

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  3. बहुत बढ़िया व प्रभावित करती रचना और साथ साथ शानदार प्रस्तुति भी , श्री राज भाई व भवानी जी को धन्यवाद
    " जै श्री हरि: "

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